तीन दिन। इतना समय लगा 56वीं GST काउंसिल के फैसले का असर ग्राहकों की जेब तक पहुंचने में। महिंद्रा ने अपनी पूरा ICE (पेट्रोल-डीजल) SUV पोर्टफोलियो 1.56 लाख रुपये तक सस्ता कर दिया है। 6 सितंबर 2025 से नई कीमतें लागू हैं और कंपनी कह रही है—टैक्स में जितनी राहत मिली, उतनी ही सीधे कीमतों में पास-थ्रू कर दी गई है।
यह कटौती GST 2.0 के तहत आई नई दरों का नतीजा है। अब छोटे कार सेगमेंट पर 18% GST है (पहले 28% थी), जबकि बड़े वाहनों के लिए फ्लैट 40% का स्ट्रक्चर रखा गया है। पहले बड़े वाहनों पर 28% GST के ऊपर अलग-अलग सेस लगते थे, जिससे कुल टैक्स बोझ कई मॉडलों पर 43–50% तक पहुंच जाता था। नई व्यवस्था ने जटिलता कम की और कई SUVs में नेट टैक्स बोझ घटा, इसलिए एक्स-शोरूम कीमतें नीचे आईं।
कंपनी ने डीलरशिप और सभी डिजिटल चैनल पर प्राइस अपडेट कर दिए हैं। सबसे अहम बात—यह ऐलान त्योहार सीजन से ठीक पहले हुआ है, जब आम तौर पर नई कारों की बुकिंग तेज हो जाती है। ऑटो इंडस्ट्री में इसे डिमांड को एक बड़ा धक्का देने वाली चाल माना जा रहा है।
कटौती हर मॉडल और वैरिएंट में समान नहीं है, लेकिन लोकप्रिय SUVs में यह काफी आकर्षक है। प्रमुख मॉडलों पर नई कीमतों के बाद इतनी बचत दिख रही है:
ये सभी कटौतियां एक्स-शोरूम कीमतों में हैं। ऑन-रोड कीमत पर इनका असर और गहरा होता है, क्योंकि रोड टैक्स और बीमा का प्रीमियम, दोनों आमतौर पर एक्स-शोरूम कीमत से लिंक होते हैं। यानी एक्स-शोरूम 1.4–1.5 लाख कम होने पर ऑन-रोड लागत में अतिरिक्त बचत भी दिखेगी।
अगर आप फाइनेंस लेते हैं, तो असर EMI में भी दिखेगा। आसान भाषा में, पांच साल की अवधि और करीब 10% ब्याज दर पर हर 1 लाख रुपये के लोन पर EMI लगभग 2,100–2,200 रुपये बनती है। ऐसे में 1.5 लाख रुपये कम कीमत पर खरीदने पर आपकी मासिक EMI करीब 3,000–3,200 रुपये तक कम हो सकती है। परिवार के बजट में यह फर्क छोटा नहीं है।
बोलेरो-बोलेरो नियो जैसे मॉडल ग्रामीण और सेमी-अर्बन बाजार में पहले से मजबूत हैं। उनकी कीमत 1.27 लाख रुपये कम होने से ट्रांसपोर्टेशन, छोटे कारोबारी और फ्लीट खरीदारों में नई मांग निकल सकती है। स्कॉर्पियो-एन और XUV700 जैसी प्रीमियम SUVs में भी एंट्री पॉइंट अब थोड़ा और नीचे आया है, जिससे पहली बार अपग्रेड करने वालों के लिए यह अच्छा मौका बनता है।
थार की बात अलग है। 2WD डीजल और 4WD डीजल—दोनों में कटौती आई है। थार Roxx पर 1.33 लाख रुपये की कमी ने नए वैरिएंट को भी अधिक आकर्षक बना दिया है। ऑफ-रोडिंग कम्युनिटी और एंथुजियास्ट बायर्स के लिए यह सीधा फायदा है।
डीलर कहते हैं, पुरानी बुकिंग्स पर भी ग्राहक नई कीमतों का लाभ लेना चाहेंगे। व्यावहारिक तरीका क्या है? अगर आपकी डिलीवरी 6 सितंबर के बाद है, तो डीलर से रिवाइज्ड प्रो-फॉर्मा इनवॉइस मांगें। ज्यादातर मामलों में कीमत कटौती डिलीवरी की तारीख के हिसाब से लागू होती है, पर आखिर में नीति डीलरशिप-टू-डीलरशिप अलग हो सकती है—लिहाजा लिखित कन्फर्मेशन जरूर लें।
GST 2.0 ने पैसेंजर व्हीकल टैक्सेशन को सरल किया। छोटे वाहनों पर 18% और बड़े वाहनों पर 40%—यह क्लीन स्लैबिंग पहले के तुलनात्मक ढांचे की तुलना में साफ और अनुमानित है। पहले अलग-अलग सेसेस की वजह से कंपनियों और ग्राहकों दोनों के लिए लागत समझना मुश्किल होता था। अब कंपनियां नई लागत को सीधे कीमत में ट्रांसलेट कर पा रही हैं—महिंद्रा ने यही किया।
टाइमिंग स्मार्ट है। सितंबर-नवंबर के दौरान नवरात्रि, दशहरा, और दिवाली में कार खरीदारी बढ़ती है। कीमत कटौती से शो-रूम ट्रैफिक बढ़ना तय है। डीलर नेटवर्क को भी अब इन्वेंट्री मूवमेंट तेज होने की उम्मीद है। बेहतरी ये कि पिछले दो साल में सेमीकंडक्टर सप्लाई सामान्य हुई है, तो लोकप्रिय वैरिएंट पर वेटिंग पीरियड पिछले पीक के मुकाबले संभाले जा सकते हैं—फिर भी हाई-डिमांड कलर्स/टॉप ट्रिम्स पर कुछ हफ्तों की प्रतीक्षा पक्की मानिए।
यह कहानी सिर्फ महिंद्रा तक सीमित नहीं है। अन्य कंपनियां भी ट्विटर नहीं, कीमतों से जवाब दे रही हैं। टाटा मोटर्स ने भी 1.45 लाख रुपये तक की कटौती की है। टोयोटा ने फॉर्च्यूनर जैसे लोकप्रिय मॉडल पर 3.49 लाख रुपये तक कीमत घटाई है। रेनो, ह्यूंडई, मारुति सुजुकी और लग्जरी ब्रांड्स—BMW, मर्सिडीज, ऑडी—सबने GST 2.0 के बाद रेट कार्ड रिवाइज किए हैं। यानी पूरे बाजार में प्राइस रीसेट चल रहा है।
कमर्शियल साइड पर भी असर है। कंपनी का कहना है कि उसकी कुल वॉल्यूम का 60% से ज्यादा हिस्सा—जिसमें कमर्शियल व्हीकल्स भी शामिल—अब 18% वाले लोअर स्लैब का लाभ उठा रहा है। इसका अर्थ है फ्लीट ऑपरेटर्स और लास्ट-माइल डिलीवरी प्लेयर्स के लिए भी लागत में कमी, जो आगे चलकर फेयर/फ्रेट प्राइसिंग पर असर डाल सकती है।
यूज्ड-कार मार्केट पर क्या होगा? जब नई कारें सस्ती होती हैं, तो सेकेंड-हैंड कीमतें आमतौर पर थोड़ी नरम पड़ती हैं। थार और स्कॉर्पियो जैसे मॉडल्स की रीसेल स्ट्रॉन्ग रहती है, पर 1–3 साल पुरानी गाड़ियों में कुछ प्रतिशत का सुधार-घटाव दिख सकता है। जो लोग अपग्रेड करना चाहते हैं, उनके लिए यह दो तरफा फायदा बन सकता है—पुरानी कार बेचने का सही समय चुनें और नई कार पर कटौती का लाभ लें।
खरीदारों के लिए एक छोटा चेकलिस्ट काम का रहेगा:
ग्राहकों के लिए यह भी ध्यान देने लायक है कि राज्य के हिसाब से रोड टैक्स रेट बदलते हैं। तो एक ही एक्स-शोरूम कटौती, अलग-अलग राज्यों में अलग ऑन-रोड बचत दिखा सकती है। मैन्युफैक्चरिंग बैच/विन नंबर चेक करना भी अच्छा है, ताकि आपको ताजा प्रोडक्शन यूनिट मिले और कोई पुराना स्टॉक न थमाया जाए—हालांकि कीमत कटौती के बाद पुराना स्टॉक भी जल्दी क्लियर हो जाएगा।
इंडस्ट्री नजरिए से देखें तो यह कटौती सिर्फ शॉर्ट-टर्म स्पाइक के लिए नहीं, बल्कि प्राइसिंग स्ट्रक्चर को स्थिर करने की कोशिश है। जब टैक्स फ्रेमवर्क सरल होता है, तो कंपनियां लंबे समय का प्लान बनाती हैं—लॉन्च टाइमिंग, वैरिएंट मिक्स, और पार्ट्स लोकलाइजेशन तक प्रभावित होते हैं। SUV सेगमेंट में भारत की हिस्सेदारी लगातार बढ़ी है, और नई कीमतें प्रीमियम SUVs को ज्यादा पहुंच योग्य बना देंगी।
एक और असर—सेगमेंट शिफ्ट। जो खरीदार कॉम्पैक्ट सेडान या छोटे हैचबैक देख रहे थे, वे अब कॉम्पैक्ट/मिड-SUV की ओर शिफ्ट हो सकते हैं, क्योंकि अंतर कुछ वैरिएंट्स में कम हो गया है। डीलरशिप्स भी इसी माइग्रेशन की तैयारी कर रही हैं—टेस्ट ड्राइव स्लॉट्स और हॉट-सेलिंग ट्रिम्स पर फोकस बढ़ेगा।
सरल शब्दों में, कीमत घटने से बाधा कम होती है। और कार खरीदना अक्सर भावनाओं से जुड़ा निर्णय होता है—पहली कार, परिवार का अपग्रेड, ऑफ-रोडिंग का शौक, लंबी यात्राएं—हर कहानी के लिए अब बिल थोड़ा हल्का है। महिंद्रा ने शुरुआत कर दी है, बाकी ब्रांड्स भी लाइन में हैं। अब गेंद ग्राहक के पाले में है—जरूरत, बजट और टाइमिंग—तीनों मैच करें और तब फैसला लें।